कुंभ मेला, दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है, हर 12 साल में आयोजित किया जाता है। यह अंतराल ज्योतिष, पौराणिक कथाओं, और खगोलीय घटनाओं पर आधारित है। यह समयावधि हिंदू परंपराओं और मान्यताओं में गहराई से जुड़ी हुई है। महाकुंभ का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक भी है। यह मेला लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं, साधु-संतों, और पर्यटकों को एक साथ लाता है, जो पवित्र त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना, और सरस्वती नदियों का संगम) में स्नान करके अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष की कामना करते हैं।
आइए जानते हैं कि कुंभ मेला हर 12 साल में क्यों होता है :
1. ज्योतिषीय महत्व
कुंभ मेला का समय बृहस्पति (गुरु) और सूर्य की विशेष राशियों में स्थिति से निर्धारित होता है,बृहस्पति का चक्र: बृहस्पति को सूर्य की परिक्रमा करने में लगभग 12 साल लगते हैं। यह हर राशि में लगभग 1 साल तक रहता है।
सूर्य की स्थिति और सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर कुंभ मेला का आयोजन होता है। जब बृहस्पति कुंभ राशि (Aquarius) में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि (Aries) में होता है, तो प्रयागराज (इलाहाबाद) में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। यह विशेष संयोग हर 12 साल में एक बार होता है।
2. पौराणिक कथा
कुंभ मेला का संबंध हिंदू शास्त्रों (जैसे पुराण) में वर्णित समुद्र मंथन की कथा से है। इस कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान, अमृत (अमरत्व का नेक्टर) से भरा एक कलश (कुंभ) प्रकट हुआ। अमृत को पाने के लिए देवताओं (देव) और असुरों (राक्षस) के बीच युद्ध छिड़ गया। अमृत की रक्षा के लिए, भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया और कलश को लेकर आकाश में उड़ गए। इस दौरान, अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिरीं थी, प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक ऐसा मान्यता है कि देवताओं और असुरों के बीच यह युद्ध 12 दिव्य दिनों तक चला, जो 12 मानव वर्षों के बराबर है। इसलिए, इस घटना की याद में हर 12 साल में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
3. खगोलीय चक्र
12 साल का चक्र खगोलीय घटनाओं और ग्रहों की गति से भी जुड़ा हुआ है। ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति हर 12 साल में दोहराई जाती है, जो कुंभ मेला के लिए एक शुभ समय माना जाता है।
4. कुंभ मेला के प्रकार
जहां महा कुंभ मेला हर 12 साल में होता है, वहीं कुंभ मेला के अन्य प्रकार भी हैं जो कम अंतराल में आयोजित होते हैं,
अर्ध कुंभ मेला: हर 6 साल में हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित होता है।
पूर्ण कुंभ मेला: हर 12 साल में चार पवित्र स्थानों पर आयोजित होता है।
महा कुंभ मेला: हर 144 साल (12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद) प्रयागराज में आयोजित होता है।
5. आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
12 साल का चक्र हिंदू धर्म में समय की चक्रीय प्रकृति और आस्था के नवीनीकरण का प्रतीक है। यह लाखों श्रद्धालुओं को अपने पापों को धोने, आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने, और अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है।
कुंभ मेला का 12 साल का चक्र ज्योतिष, पौराणिक कथाओं, और खगोल विज्ञान का एक सुंदर मेल है। यह हिंदू परंपराओं और ब्रह्मांड के बीच गहरे संबंध को दर्शाता है। यह पवित्र समागम न केवल करोड़ों लोगों की आस्था को मजबूत करता है, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी प्रदर्शित करता है।