मोपला : जब 100 साल पहले तुर्की की आग में भारत जल रहा था । खिलाफात आन्दोलन की की असफलता से चिढ़े मुसलमानों ने पुरे देश में दंगे करने शुरू कर दिए | केरल में मालावार क्षेत्र में मुस्लिम मोपलाओं ने वहां के हिन्दुओं पे जो अत्याचार ढाए, उनकी जिस बर्बरता से हत्या की उसे पढ़कर हृदय दहल जाता है।
हिन्दुओ का धर्मातरण
1 – बड़ी संख्या में हिन्दुओं को मारा गया , बल पूर्वक धर्मान्तरित किया गया , हिन्दू औरतों और बच्चो को किया गया | यह सब गाँधी के खिलाफत आन्दोलन के कारण हुआ ।
2 – 1920 तक जिस कोंग्रेस पार्टी का लक्ष्य स्वराज्य प्राप्ति का था गाँधी ने अचानक उसे बदलकर आन्तरिक विरोध के बाद भी एक दूर देश तुर्की के खलीफा के सहयोग और मुस्लिम आन्दोलन में बदल डाला गया |
3 – गाँधी जी अपनी नीति के कारण इसके उत्तरदायी थे,मौन रहे। उत्तर में यह कहना शुरू कर दिया कि – “मालाबार में हिन्दुओं को मुस्लमान नही बनाया गया सिर्फ मारा गया”, जबकि उनके मुस्लिम मित्रों ने ये स्वीकार किया कि मुसलमान बनाने कि सैकडो घटनाएं हुई है। पर गाँधी जी एक न सुनी और ओ झूठ बोलते रहे |
4 – इतने बड़े दंगो के बाद भी गांधी की अहिंसा की दोगली नीत पर कोई फर्क नहीं पड़ा मुसलमानों को खुश करने के लिए इतने बड़े दंगो के दोषी मोपला मुसलमानों के लिए फंड शुरू कर दिया। और हिन्दुओ को ही दोष मानते रहे | गाँधी जी इस दोगली नीति ने हजारो हिन्दुओ को क़त्ल कर दिया गया |
मुस्लिमो पर बिचार
5 – गाँधी ने “खिलाफत आन्दोलन” का समर्थन करके इस्लामी उग्रवाद को पनपाने का मोका दिया ।
6 – श्री विपिन चन्द्र पाल, डा. एनी बेसेंट, सी. ऍफ़ अन्द्रूज आदि राष्ट्रवादी नेताओं ने कांग्रेस की बैठक में खिलाफत के समर्थन का विरोध किया , किन्तु इस प्रश्न पर हुए मतदान मैं गाँधी ही जीत गए।
7 – मदनमोहन मालवीय जी तहत कुछ नेताओं ने चेतावनी दी की खिलाफत आन्दोलन की आड़ मैं मुस्लिम भावनाएं भड़काकर भविष्य के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है परन्तु गांधीजी ने कहा ‘ मैं मुसलमान भाईओं के इस आन्दोलन को स्वराज से भी ज्यादा महत्व देता हूँ “l
8 – महान स्वाधीनता सेनानी तथा हिन्दू महासभा के नेता भाई परमानन्द जी ने उस समय चेतावनी देते हुए कहा था की , ‘ गाँधी जी तथा कांग्रेस ने मुसलमानों को तुष्ट करने के लिए जिस बेशर्मी के साथ खिलाफत आन्दोलन का समर्थन किया तथा अब खूंखार हत्यारे मोपलों की प्रसंसा कर रहे हैं, यह घटक नीति आगे चल के इस्लामी उग्रवाद को पनपाने में सहायक सिद्ध होगी l‘जो कुछ भी आज हो रहा है उन्ही करामातो की देन है |
9 – डॉ. आंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ (1940) में लिखा, ‘सच्चाई यह है कि असहयोग आंदोलन का मूल उद्देश्य स्वराज्य नहीं, बल्कि खिलाफत था और स्वराज्य का गौण उद्देश्य बनाकर उससे (बाद में) जोड़ दिया गया था, ताकि हिंदू भी उसमें भाग लें।’ और हिन्दुओ को मुर्ख बनाया जा सके |
10- कांग्रेस की अध्यक्ष रही डा. एनी बेसेंट ने २९ नवम्बर १९२१ को दिल्ली मैं जारी अपने कथन में कहा था :-– “असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन का भाग बनाकर गांधीजी तथा कुछ कोंग्रेसी नेताओं ने मजहबी हिंसा को पनपने का अवसर दिया। ओर खिलाफत आन्दोलनकारी मोपला मुस्लिम मौलानाओं द्वारा मस्जिदों मैं भड़काऊ भाषण दिए जा रहे थे और दूसरी और असहयोग आन्दोलनकारी हिन्दू जनता से यह अपील कर रहे थे कि हिन्दू – मुस्लिम एकता को पुष्ट करने के लिए खिलाफत वालों को पूर्ण सहयोग दिया जाए l
गांधी जी ने खिलाफत को ‘मुसलमानों की गाय’ कहकर हिंदुओं को प्रेरित किया था । यानी जैसे हिंदू गाय पूजते हैं, उसी तरह मुसलमान अपने खलीफा को, जबकि मुस्लिम जगत में कहीं खिलाफत की परवाह न थी। उलटे अरब के मुसलमान तुर्की के खलीफा से मुक्ति चाहते थे। खुद तुर्क लोग ‘खिलाफत’ से परेशान थे। यह स्वयं महान तुर्क नेता कमाल पाशा ने कहा था। उन्होंने ही पहले ऑटोमन-तुर्क सल्तनत और फिर खिलाफत को 1924 में खत्म कर दिया।
जब गांधी जी खिलाफत आंदोलन चला रहे थे, उसी समय तुर्क उसे खत्म कर रहे थे। तुर्की साम्राज्य बनाए रखने का मतलब था कई देशों को तुर्की का उपनिवेश बनाए रखना, पर गांधी जी ने यंग इंडिया (2 जून, 1920) में लिखा, ‘मेरे विचार से तुर्की का दावा न केवल नैतिक एवं न्यायपूर्ण है, बल्कि पूर्णत: न्यायोचित है, क्योंकि तुर्की वही चाहता है जो उसका अपना है। गैर-मुस्लिम और गैर-तुर्की जातियां अपने संरक्षण के लिए जो गारंटी आवश्यक समझें, ले सकती हैं, ताकि तुर्की के आधिपत्य के अंतर्गत ईसाई अपना और अरब अपना स्वायत्त शासन चला सकें।’ गांधी जी ने आगे लिखा, ‘मैं यह विश्वास नहीं करता कि तुर्क निर्बल, अक्षम या क्रूर हैं।’ यह भी गलत था, क्योंकि तुर्कों ने आर्मेनियाई जनसंहार (1915) किया था। उसमें दस-पंद्रह लाख आर्मेनियाई लोगों का तुर्कों ने सफाया किया। उन्हीं को गांधी जी दयालु कह रहे थे।
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