समृद्ध इतिहास की कमजोर कड़ी हम खुद है, इतिहास से नही सीखे तो खुद इतिहास बनकर रह जायेंगे |

Sidheswar
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मन पर विचार कीजिये हम पिछले 1000 सालो से क्यों पिटा रहे है, आखिर क्या हमें कमी थी जो इस हाल में हम पहुच गए | हम पिछले अतित्त को भूल जाते है, हमारी याददास्त कमजोर हो गई है, हमारी इतनी समृद्ध इतिहास को भुला दिए है, हमें दुसरो की किया धरा बहुत अच्छा लगता है पर अपनों का नही, हमे 1000 सालो से इंजेक्शन दिया जा रहा है और अभी तक दिया ही जा रहा है, अहमे सोने की आदत हो गई है ओ भी गहरे नीद में सब कुछ गवा की आज भी सो रहे है |


हम कितने फैले हुए थे,देखा जाय तो चीन से लेकर कम्बोडिया, वर्मा ,नेपाल भूटान,पाकिस्तान, बंगलादेश ,अफ्गिनिस्तान,वियतनाम तक फैले थे, सौर मंडल में हमारी पहुच 1000 साल पहले ही था हमारे ऋक्षी मुनियो पहले ही बता दिया था सौर मंडल के ग्रह उपग्रह के बारे में चाँद और सूरज के बारे में,आज नासा 50 साल से ये बताने में कामयाब हुआ है जो हमारे पूर्वज कई सो साल ही बता दिया था, हमें इतना ज्ञान था की सूर्योदय और सूर्यास्त कब और कितना मिनट में होना है ये भी पता था,सेकंड के 100 हिस्सा अल्प तक का ज्ञान था |


आज नासा बताती है की सूरज ग्रहण और चन्द्र ग्रहण कब और कहाँ और कैसे लगेगा, लाखो करोडो खर्चा करने के बाद नासा बताता है पर हमारे पंडित सिर्फ पत्रा देख के मिनटों में बता देता है साथ ही सौर मंडल की स्तिथि भी बता देती है मिनटों में, कुम्भ मेला हर १२ साल के बाद लगता है ये मेला आज से नही कई हजरों सालो से होता आ रहा है | हज़ार सालो से पता था मकर और कुभ की स्तिथि 12  साल में एक समान स्तिथि में आती है | हमारे सनातन में मनाये जाने वाले त्यौहार जो कही न कही सौर मंडल से प्रेरित ही है कहने का मतलब ये है की हमारी समृधि कहाँ थी और हम आज कहाँ है |


सोने की चिड़िया कहे जाने वाला भारत आज उस मोड़ में खड़ा है की हम अपने आप में बचा नही पा रहे है हमें शत्रु बोध नही रहा हम अपने शत्रु को पहचान नही पाए, हमें तरीके से लूटा गया,क्योकि हमें कभी शत्रुता सोचा ही नही था | हम अपने धर्म ग्रंथो और देवी देवताओ से नही सिखा जिसके हाथो में हमेशा हथियार हुआ करता है | हम अतीत से सीखना भूल चुके है यही हमारी कमजोरी है इसलिए हम 1000 सालो से पिटा जा रहे है |

 

विचार कीजिये 1500 ई. के बाद के ब्रिटिश कितने साहसी और बुद्धिमान रहे होंगे, जिन्होंने एक ठण्डे प्रदेश से निकलकर, अनजान रास्ते  से होकर और अनजान जगहों पर जाकर लोगों को गुलाम बनाया और अपना साम्राज्य स्थापित किया | आज के प्रपेक्ष में देखा जाय तो ब्रिटेन की जनसंख्या और क्षेत्रफल हमारे गुजरात राज्य के बराबर है, लेकिन उन्होंने दशकों नहीं शताब्दियों तक दुनिया को गुलाम बनाए रखा ये उनकी काबिलियत ही तो था |


भारत की करोड़ों की जनसंख्या तब भी थी इतने बड़े भूभाग में  मात्र कुछ लाख या हजार लोगों ने गुलाम बनाकर रखा था,गुलाम ही नहीं बनाया बल्कि  अपने सत्ता के खूब हत्यायें और लूटपाट भी की हमारी सामजिक ताना बाना को तहस नहस कर दिया हमारी गुरुकुल परंपरा को खत्म कर दिया हमारी इतिहास को मिटा दिया हमारी खुद की पहचान खुद ही सक के घेरे में आ गए, सोचो अपनी कौम पर कितना गर्व होगा कि मुठ्ठी भर लोग दुनिया पर राज किया | इनकी साम्राज्य कितनी विशाल रहा होगा सोचने वाली बात है ,


हजारो मील दूर से आकर अपने संख्या से कई गुना अधिक जनसँख्या वाला देश में राज किया, भारत के जिला की बात किया जाय तो 50-100 से जायदा नही रहे होगे पर गुलाम बनाये रखा ये अद्भुत साहस से कम नही है ,सोचो उनके पूर्वज पर कितना गर्व करते होगे |

 

 कितना अजीब लगता है ये सोच कर की हमारे ही लोग अंग्रेजो के सैनिक में भरती होकर हम पर ही अत्याचार करते थे, अंग्रेजो के पास तो अत्याचार करने के लिए लोग भी नही थे, हमारे ही लोग हमें ही लूटते थे, क्या गजब की मानसिकता के गुलाम थे हम, चंद्रशेखर, बिस्मिल जैसे मात्र कुछ गिनती के लोग थे, जिन्हें हमारा ही समाज  हेय दृष्टि से देखता था,


दूसरी तरफ अरब के रेगिस्तान से कुछ  लोग एक किताब लेकर आये अपने किताब को सर्बोपरी बताकर कर हमारे हमारे किताब को जूठा बता दिया और हम होने दिया ये भूख,नंगे ,जाहिल, आततायी लोग आए, और उन्होंने भी हमको लूटा, मारा, बलात्कार किया, और हम वहाँ पर भी नाकाम रहे | उस किताब के अनुयाई लगातार बढ़ाते गए, और हम चुप चाप देखते रहे होने दिया, तलवार के डर से सलवार पहनने वाले आज वही नपुंसक समाज उन चंद लोगों के नाम के पीछे अपना कायरतापूर्ण इतिहास छुपाकर  झूठा दम्भ भरते है |


हमने 1000 सालों की दुर्दशा से कुछ नहीं सीखा, आज एक जनसँख्या उन्हीं अरबी अत्याचारियों को अपना पूर्वज मानने लगी है, कुछ उन ईसाइयों को अपना पूर्वज मानने लगी है, यही लोग अपने पूर्वजो को बाप मानने से ही इंकार कर दिया कुछ लोग अरब को और कुछ लोग विटिकन को बाप बना लिया | पर अपने अतीत को भूल गए ,और हम होने दिया आज भी हो रहा है पर हम चुप है |


उन्होंने हमारे मन्दिर तोड़े, हमारी स्त्रियों से बलात्कार किया , लेकिन हमने क्या किया ? वो दिन में विवाह में लूटपाट करते थे , तो रात को चुपचाप विवाह करने लगे, जवान लड़कियों को उठा ले जाते हैं, तो बचपन में ही शादी करने लगे और अगर उसमें ही असुरक्षा हो, तो बेटी पैदा होते ही मारते रहे, यही हमारी सच्चाई है कहाँ तक भागेगे अब रास्ता भी बंद हो गया इतिहास देखा जाय  तो हमारे देश के 15 टुकड़े से अधिक हो चूका है हमारे पास भागने का रास्ता बंद हो चूका है अब मुकाबला की बरी है  या तो इधर होगा या फिर उधर |

 

स्वतंत्रता मिलने पर भी हम मानसिक गुलाम ही रहे, दूसरी तरफ हमारी व्यवस्थाएं भी नही बदले, हम अपने नाकामियों पर कभी मंथन नही किया, हमारी बहुसंख्यक जनसँख्या इस मानसिकता में हमेशा रही की हमें क्या, युद्ध हो तो कोई मतलब नही ये सब बस क्षत्रिय के काम थे, उनको करना है तो करेंगे , नहीं करना तो नहीं करेंगे | जयचंद कोई नही पैदा किया हम खुद पैदा किये है |

 

यही कारण रहा होगा मुस्लिम आक्रमण से राजस्थान क्षेत्र छोड़कर समस्त पुरे भारत को धराशाही कर दिया  क्योंकि राजस्थान में क्षत्रिय जनसँख्या अधिक थी तो संघर्ष करने में सफल रहे, और राजस्थान बना रहा |

 

इजराइल से कुछ सीखना चाहिए था शत्रुओं से घिरा हुआ देश लेकिन सुरक्षित है , क्योंकि वहाँ के प्रत्येक व्यक्ति की देश और धर्म की सुरक्षा की जिम्मेदारी है , यह बोध हमारे पास है ही नही हम एक दुसरे को टांग खीचने में मजबूर रहे ,ये काम सिर्फ क्षत्रियों पर छोड़ दिया था, जबकि फ़ौज में भी युद्ध के समय माली, नाई, पेंटर, रसोइयाआदि सभी लड़ाका बनकर तैयार रहते |


हमने युद्धकाल परिस्थितियों को नहीं समझा और अपनी योजनायें नहीं बनाई और न ही अपनी व्यवस्थाएँ ही बदली,    मुस्लिमों एवं अंग्रेजों से जिस तरह से  क्षत्रिय लड़े, अगर पूरा हिन्दू समाज क्षत्रिय बनकर, लड़ा होता तो  हम कभी गुलाम नही होते | पर हमें मूक दर्शक बनने की आदि थे अगर पूरा हिन्दू समाज क्षत्रिय बनकर लड़ता तो हमारी दुर्दशा इतना बुरा नही होता,


समाज को चलाने के लिए वर्ग को वर्गीकृत किया ही जाता है , लेकिन विपत्तिकाल में अपने  नीतियों में परिवर्तन किया जाता है, लेकिन हम इसमें पूरी तरह नाकाम लोग हैं. इसलिए 1000 सालों से दुर्भाग्य  हमारे पीछे पड़ा है और आज भी है |


अटल जी के शब्दों के अनुसार  कहते हैं कि एक युद्ध जीतने के बाद जब 1000 अंग्रेजी सैनिकों ने  विजय-जुलूस निकाला था, तो  सड़क के दोनों तरफ 20000 लोग देखने आए थे, अगर ये 20000 लोग पत्थर-डण्डे से भी मारते, तो 1000 सैनिकों को भागते भी नहीं बनता, लेकिन ये 20 हजार लोग केवल युद्व के मूक दर्शक थे, यही दुर्भाग्य है हमारी |

 

 आज भी कुछ  नही बदला है, मुगलों और अंग्रेजों का स्थान पर एक  खास जन्मजात परिवारवाद  ने ले लिया साथ ही   वामपंथियों और सेकुलरों के रूप में खतरनाक गद्दारों की फौज भी  पैदा हो गई, लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम आज भी बंटे हुए हैं, हमारी 100 करोड़ होकर भी मूक दर्शक बने हुए हैं, भले ही कुछ लोग कुछ जागृति पैदा करने में सफल हुए हों, पर बिना संपूर्ण जागृति से इस देश के दुर्भाग्य का अंत नही होने वाला |

 

 अगर हम इतिहास से नही सीखे तो आनेवाले समय में वाले  खुद इतिहास बनकर रह जायेंगे |

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