मक्कारी का दूसरा रूप ही तो है वाम, पांच शब्दों से मिलकर बना ये मक्कार शव्द जिसे पंच मक्कार भी कहा जा सकता है ,वामपंथियों का सारा जीवन काल इन्ही पांच तथ्यो के इर्द गिर्द घूमता रहता है, इनकी कुटलता और मक्कारी कूट कूट कर भरा होता है ,
ये मक्कार शब्द की
उत्पति 1) मांस 2) मंदिर 3) मैथुन 4) मुद्रा 5) मत्स्य , ये पांच तत्व है जो वाम का शाब्दिक
अर्थ देता है |
वाम का अर्थ ही होता
उल्टा और विरोध,कहने का मतलब ये है की आप जो करंगे उसका उल्टा ही करेगा और प्रतेक
निर्णय का विरोध ही इसका धर्म होता है,ये लोग प्रतेक बात, प्रतेक निर्णय का अकारण
विरोध करेंगे,काल्पनिक सभ्यवाद को बढ़ावा और पूंजीवाद को असफल समाप्त करने का
पक्षधर रहेंगे, यह एक ऐसा विचारधारा है जो दुर्गानो से युक्त किसी भी राष्ट्र की संस्कृति,अध्यात्म व शिक्षा को दीमक की तरह खोखला कर देती |
सबने देखा हो वामपंथ का काला चेहरा जो जेनयूं में दिखता है वामी होस्टलो और काली पहाड़ी के पीछे झाड़ियो में जो क्रांति होती है वहां पर स्वतंत्रता,लोकतंत्र,मानवाधिकार और शांति सब कुछ कुचल दिया जाता | रात के अँधेरे में निकलने वाले ये चेहरा इतना घिनौना है इसको सबने ही देखा होगा | वामपंथी एक काल्पनिक दुनिया का बेताज बादशाह होते है |
वामपंथ के असली नायक और
चेहरा को अगर देखना हो तो लेनिन,स्टॅलिन और माओ की वीभत्स दृश्य देखा जा सकता है
इनको कारनामो को याद किया जा सकता है | एक रुसी साहित्यकार मैक्सिम_गोर्की ने जो वर्णन किया है जो रूह कपाने वाली है
| लेलिन के शासन काल में अपने विरोधियो को वाये हाथ और वाये पैर को काटकर पेड़ में
टांग दिए जाते थे यही ही नही अपने विरोधियो को पकड़कर उनके पेट में चीरा लगाकर फिर
आंत को थोड़ा बाहर निकालकर कीलों से पेड़ में ठोक देते थे,फिर उस व्यक्ति को घूंसे
मार-मार कर पेड़ के चारों तरफ घूमाते ताकि आंते पेट में से निकलकर पेड़ के चारों
तरफ लिपट जाएं |
जब रूस में कम्युनिज्म का
उदय हुआ तब रूसी ग्रामीण अपने पेट भरने लायक अन्न उपजा लेते थे। लेकिन 1918 में लेनिन ने निजी संपत्ति की समाप्ति की
घोषणा कर दी। जिससे किसानो की लाभ की आशा ख़त्म हो गया जिससे किसान अपने खाने लाइक
ही अनाज को बोया,जिसकी उपज 74 मिलियन टन हुआ करता था वह अनाज घटकर 1920 में 20 मिलियन टन ही उपज हुआ | लेलिन ने इसे क्रांति का विरोध माना जिससे लेनिन की खूंखार वामपथ चेहरा सामने आया
और किसानो के अन्न का एक एक दाना छिनकर परिवार समेत भूखो मरने को छोड़ दिया | इस
विद्रोही से रूस में 5 लाख लोग भूख से तड़पकर तड़पकर मर गए |लेनिन के बोल्शेविक शासन
को मान्यता न देने वाले शहर,कस्बे और गांव जला डाले थे |
इस भयानक मानव त्रासदी को कम्युनिस्ट शुभ बताते हुए लेनिन ने 19 मार्च,1922 को पोलित ब्यूरो को अपनी बात लिखा जो इस प्रकार है 'वर्तमान परिस्थिति हमारे लिए लाभप्रद है,जो लोग भूख से मर रहे हैं,जिन्होंने भूख के कारण एक-दूसरे को खाना शुरू कर दिया है, जो लाखों की संख्या में मर रहे हैं और जिनकी लाशें देशभर में सड़कों के किनारे सड़ रही हैं उनकी मदद से हम चर्च की संपत्ति छीन लेंगे। इस अकाल के कारण लोगों में व्याप्त निराशा हमारी एकमात्र आशा है जिसके कारण वे हमें आशा से देखेंगे।“
इंतनी बड़ी मानव त्रासदी
को वामी क्रांति बताते है ,इनके कुकर्मो को छिपा देते, कम्युनिस्ट एक ख्वाबी
विचारधारा हो सकती है पर हकीकत से कोई लेना देना नही, कम्युनिस्ट एक सपनों की
दुनिया है, ये ऐसी सपना दिखा सकता है जिसे कहा जा सकता है हिजड़े के घर में बेटा
पैदा करना ऐसा ही यह विचारधारा है |
लेनिन की मौत के बाद 1924 में स्टालिन ने सत्ता संभाला,स्टालिन ने तो लेनिन को भी पीछे छोड़ते हुए आतंक की नया साम्राज्य खड़ा कर दिया, क्रांति के नाम पर करोड़ों रूसी श्रमिकों और किसानों को मौत के घाट उतार दिया और नाम दिया कम्युनिस्ट क्रांति,कुछ साल बाद ही माओ ने चीन और कई देश में रूस जैसे क्रांति के नाम पर वही सब कुछ दोहराया गया जो लेनिन और स्टॅलिन ने दोहराया था |
अर्बन नक्सलियों के रूप मे हमारे देश मे भी बचे खुचे मानसिक रूप से बीमार वामपंथी लेनिन, स्टालिन और माओ की उसी विचारधारा पर चल कर अपनी
काल्पनिक सर्वहारा दुनिया मे विचरण करते रहते है, अपने बौद्धिक आवरण के पीछे छिपकर, भारत को खंड खंड करने की दूषित ख्वाब पाले रहते
है, उसकी नसों मे दौड़ता विषैले ज्ञान का
इंजेक्शन लगाने वाले विफल प्रयास आज भी जारी है, जिसमे उन्हे कबीलाई जिहादियों,चर्चों और कांग्रेस का भरपूर समर्थन मिलता है, क्योंकि
इन सबका लक्ष्य और उद्देश्य एक ही है |
घात लगाये बैठे शत्रुओं
से अवयस्क और लापरवाह हमारा सनातन समाज है
जो इनके जाल में फ़सकर अपने हित अहित का फैसला नही कर पाते है, और इनके साथ सुर में
सुर मिलाकर अपने पैर मे कुल्हाड़ी मारते है, अपनी संतति और भविष्य का चिंतन तक नही करते |